Last Updated on August 22, 2025 9:28 am by BIZNAMA NEWS
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भारतीय शेयर बाजारों की छह दिन की लगातार तेजी शुक्रवार को थम गई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट केवल वैश्विक संकेतों का असर नहीं है बल्कि विदेशी निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली, रुपये पर दबाव और सरकार की नीतिगत विश्वसनीयता को लेकर बढ़ती चिंताओं का भी प्रतिबिंब है। ऐसे में यह सवाल फिर उठ रहा है कि 2024 के आम चुनाव से पहले सरकार की आर्थिक प्रबंधन क्षमता कितनी टिकाऊ है।
सेंसेक्स 693.86 अंक (0.85%) गिरकर 81,306.85 पर बंद हुआ, जबकि निफ़्टी 213.65 अंक (0.85%) टूटकर 24,870.10 पर आ गया। दिन के कारोबार में सेंसेक्स ने 81,291.77 का निचला स्तर छुआ।
अमेरिकी फेड और वैश्विक संकेतों का दबाव
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के अनुसंधान प्रमुख विनोद नायर ने कहा, “भारतीय बाजारों ने लगातार छह दिनों की तेजी खो दी और निवेशक अब अमेरिकी फेड चेयर जेरोम पॉवेल के जैक्सन होल भाषण से पहले सतर्क हैं। अगर फेड ने ब्याज दरें लंबे समय तक ऊँची रखने का संकेत दिया तो FII बिकवाली और तेज हो सकती है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ का दबाव रूस रणनीति से जोड़कर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे विदेशी निवेशकों की चिंता और बढ़ी है।
बाजार में चौतरफा बिकवाली
शुक्रवार को लगभग सभी प्रमुख सेक्टर दबाव में रहे:
- निफ़्टी बैंक 606 अंक (1.09%) टूटा; एचडीएफसी बैंक, कोटक बैंक, एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक गिरावट में रहे।
- निफ़्टी एफएमसीजी 565.60 अंक टूटा, जिससे उपभोक्ता मांग को लेकर चिंता फिर सामने आई।
- निफ़्टी आईटी 283.05 अंक (0.79%) गिरा।
- निफ़्टी फाइनेंशियल सर्विसेज 256 अंक (0.96%) टूटा।
एशियन पेंट्स, अल्ट्राटेक सीमेंट, टाटा स्टील, आईटीसी, टीसीएस और टेक महिंद्रा जैसे दिग्गज शेयरों में बड़ी गिरावट रही।
रुपया और विदेशी निवेश दबाव में
रुपया 25 पैसे कमजोर होकर 87.50 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। दिन की शुरुआत में जीएसटी कटौती की खबर से थोड़ी मजबूती जरूर मिली थी, लेकिन लगातार एफआईआई बिकवाली ने रुपये और इक्विटी दोनों को दबाव में रखा।
विश्लेषकों के अनुसार ऊँचे वैल्यूएशन, नीतिगत असमंजस और वैश्विक बॉन्ड यील्ड के आकर्षण के चलते विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से दूरी बना रहे हैं।
नीतिगत वादे बनाम बाजार की हकीकत
सरकार जहां आम चुनाव से पहले मजबूत अर्थव्यवस्था और विकास का दावा कर रही है, वहीं बाजार का रुख इसके उलट है। कॉरपोरेट नतीजे मिश्रित रहे हैं और खपत (कंजम्पशन) की मांग असमान बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी पूंजी और वैश्विक तरलता पर अत्यधिक निर्भरता से बाजार की मजबूती अस्थिर हो रही है।
आगे की तस्वीर: अनिश्चितता और अस्थिरता
आगामी सप्ताह में फेड के रुख से बाजार में और उतार-चढ़ाव की संभावना है। यदि संकेत सख्त (hawkish) रहे तो बिकवाली और गहरी हो सकती है, जबकि नरम रुख (dovish) होने पर थोड़ी राहत मिल सकती है।
हालाँकि, विश्लेषकों का मानना है कि जब तक रोज़गार सृजन, घरेलू मांग और संरचनात्मक सुधार मजबूत नहीं होते, तब तक केवल चुनावी घोषणाओं से निवेशक भरोसा बहाल करना कठिन होगा।