चुनाव से पहले राज्यों की कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च ₹6.4 लाख करोड़ तक पहुंचेगा: क्रिसिल

Last Updated on June 26, 2025 10:23 am by BIZNAMA NEWS

राजस्व घाटा बढ़ने की आशंका, पूंजीगत व्यय पर पड़ेगा असर

AMN / NEW DELHI

नई दिल्ली: जैसे-जैसे देश में एक के बाद एक विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, राज्य सरकारें सामाजिक कल्याण पर खर्च बढ़ा रही हैं। वित्त वर्ष 2025 में यह खर्च राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का लगभग 2% यानी अनुमानित ₹6.4 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। हालांकि यह खर्च सामाजिक-आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, लेकिन क्रिसिल रेटिंग्स के विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इससे राज्यों की वित्तीय लचीलापन और पूंजीगत निवेश क्षमताओं पर असर पड़ सकता है।

देश के 18 प्रमुख राज्य, जो कुल GSDP का लगभग 90% योगदान करते हैं, पिछले वर्ष के मुकाबले सामाजिक कल्याण पर समान स्तर पर खर्च बनाए रखेंगे। यह 2019 से 2024 के बीच देखे गए 1.4-1.6% के अनुपात की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है।

क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर अनुज सेठी ने बताया कि वित्त वर्ष 2025 और 2026 में सामाजिक कल्याण पर कुल खर्च में ₹2.3 लाख करोड़ की वृद्धि का अनुमान है। इसमें से लगभग ₹1 लाख करोड़ सीधे लाभ अंतरण (DBT) योजनाओं पर खर्च होगा, जो विशेष रूप से महिलाओं को लाभ पहुंचाने और चुनावी वादों से जुड़े हैं। शेष ₹1.3 लाख करोड़ पिछड़े वर्गों के लिए वित्तीय और चिकित्सा सहायता तथा विधवाओं व बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर खर्च किए जाएंगे।

हालांकि, सभी राज्यों में यह खर्च समान नहीं है। समीक्षा किए गए लगभग आधे राज्य सामाजिक कल्याण खर्च में तेज़ वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं, जबकि बाकी राज्यों में यह खर्च स्थिर या मामूली वृद्धि के साथ रहेगा। यह असमानता इस बात की ओर इशारा करती है कि चुनावी रणनीति के तहत लक्षित तरीके से योजनाएं चलाई जा रही हैं।

राजस्व खर्च और आय के बीच असंतुलन बढ़ रहा है। अगले दो वित्त वर्षों में राज्यों का राजस्व व्यय 13–14% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में राजस्व प्राप्तियों में केवल 6.6% की वृद्धि हुई और इस वर्ष 6–8% की वृद्धि का अनुमान है। इस अंतर से राजस्व घाटा ऊंचा बना रहेगा।

क्रिसिल रेटिंग्स के डायरेक्टर आदित्य झावेरी ने चेतावनी दी कि जब राजस्व घाटा अधिक होता है, तो राज्य सरकारें पूंजीगत व्यय में कटौती करती हैं ताकि वित्तीय संतुलन बना रहे। पिछले वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय में केवल 6% की वृद्धि हुई, जो पिछले पांच वर्षों की 11% CAGR की तुलना में काफी कम है। “अगर यह प्रवृत्ति इस वर्ष भी जारी रही, तो राज्यों की पूंजीगत व्यय क्षमता सीमित हो सकती है, जो कि अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा देने के लिए बेहद जरूरी होती है,” झावेरी ने कहा।

DBT योजनाओं में वृद्धि का समय भी चुनावी चक्र से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। जिन राज्यों में हाल ही में चुनाव हुए हैं, उन्होंने पहले ही DBT योजनाओं के बजट में वृद्धि की है। आने वाले चुनावों के मद्देनज़र इन योजनाओं में और बढ़ोतरी एक महत्वपूर्ण पहलू रहेगा।

क्रिसिल रेटिंग्स ने यह स्वीकार किया कि सामाजिक कल्याण खर्च सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, लेकिन यदि यह राजस्व आय में समान वृद्धि के बिना किया जाए, तो इससे राज्यों की क्रेडिट प्रोफाइल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में राजनीतिक दबावों के बीच वित्तीय अनुशासन बनाए रखना राज्यों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा।

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