मुद्रास्फीति में राहत, लेकिन वैश्विक संकट के बादल मंडरा रहे हैं

भारत में मुद्रास्फीति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन वैश्विक परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं। ईरान-इज़राइल संघर्ष और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल भारत की आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है। सीधे व्यापारिक संपर्क सीमित होने के बावजूद, वैश्विक बाजार की हरकतें भारत जैसे आयात-आधारित देश को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं।

R. Suryamurthy

भारत में थोक महंगाई दर मई 2025 में घटकर 0.39% पर आ गई है, जो पिछले 14 महीनों का सबसे निचला स्तर है। यह आंकड़ा आर्थिक दृष्टि से राहत देने वाला है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिरता अस्थायी हो सकती है। ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते संघर्ष ने वैश्विक बाज़ारों को झकझोर दिया है, जिससे कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतों में तेज़ उछाल आ सकता है। यह भारत के लिए नई आर्थिक चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है।

Reserve Bank of India (RBI) और QuantEco Research जैसी आर्थिक संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि यदि यह संघर्ष और तेज़ होता है तो भारत की मुद्रास्फीति फिर से बढ़ सकती है। जून 2025 में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 15% से अधिक की वृद्धि हो चुकी है, जो अब लगभग 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई है। यह वृद्धि, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद की सबसे ऊँची दर है। भारत की कच्चे तेल पर भारी निर्भरता को देखते हुए, यह एक गंभीर चेतावनी है।


1. तेल के तूफान की आशंका: होरमुज जलडमरूमध्य पर संकट की छाया

हालांकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरान का तेल उत्पादन सीमित है, लेकिन उसका रणनीतिक महत्व होरमुज जलडमरूमध्य पर नियंत्रण के कारण बहुत अधिक है। यह मार्ग 2023 में वैश्विक समुद्री तेल व्यापार का लगभग 27% हिस्सा था। यदि युद्ध इस जलमार्ग को प्रभावित करता है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच सकती हैं।

QuantEco Research के अनुसार, इस मूल्य वृद्धि का असर इस पर निर्भर करेगा कि यह संकट कितने समय तक बना रहता है। RBI का अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमतों में हर 10% की वृद्धि से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर 30 आधार अंकों का प्रभाव पड़ता है, जबकि GDP विकास दर 15 आधार अंक घट सकती है। साथ ही, यह भारत के राजकोषीय और चालू खाता घाटे को भी बढ़ा सकता है।

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और इस कारण से तेल बाज़ारों में हलचल सीधे भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। मई में महंगाई में आई गिरावट भले ही सुकून दे रही हो, लेकिन यह अस्थायी साबित हो सकती है।


2. केवल तेल ही नहीं: अन्य वस्तुओं में भी दिख रहा अस्थिरता का असर

इस संघर्ष का असर सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है। वैश्विक आर्थिक मंदी और व्यापारिक तनाव के कारण औद्योगिक धातुओं की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। CARE Ratings की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा बताती हैं कि अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमीनियम पर नए टैरिफ लगाए जाने से आपूर्ति में असंतुलन की आशंका बढ़ गई है, खासकर चीन द्वारा लगातार बढ़ती आपूर्ति के कारण। इससे अभी के लिए कुछ हद तक लागत कम हो सकती है, लेकिन लंबे समय में यह वैश्विक व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

इसके उलट, कीमती धातुओं जैसे सोना की कीमतों में तेज़ उछाल आया है। जून 2025 में अब तक सोने की कीमत में लगभग 5% वृद्धि हुई है, जो अब 3450 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस तक पहुँच गई है। यह निवेशकों की जोखिम से बचाव की प्रवृत्ति को दर्शाता है और वैश्विक बाज़ार में चिंता का संकेत है।

भारत का ईरान और इज़राइल से प्रत्यक्ष व्यापार सीमित है — FY25 में ईरान के साथ 0.3% निर्यात और 0.1% आयात, जबकि इज़राइल के साथ 0.5% निर्यात और 0.2% आयात हुआ। हालांकि, पेट्रोलियम और रत्न-आभूषण, जो FY25 में कुल 38% आयात का हिस्सा थे, अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं। इससे घरेलू उपभोक्ता कीमतों पर असर पड़ सकता है।


3. अस्थिर वैश्विक परिदृश्य में नीति निर्धारण की चुनौती

विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा राहत भरी स्थिति के बावजूद, भारत को बेहद सतर्क रहना होगा। Acuité Ratings के CEO संकर चक्रवर्ती का कहना है कि “जहाँ एक ओर महंगाई में आई कमी स्वागत योग्य है, वहीं वैश्विक बाज़ारों में अस्थिरता और एल-नीनो जैसे मौसम संबंधी जोखिम भी नजरअंदाज नहीं किए जा सकते।”

CARE Ratings की रजनी सिन्हा का मानना है कि भूराजनीतिक घटनाक्रम और वैश्विक व्यापार नीति पर लगातार नजर रखना आवश्यक है, क्योंकि ये कारक भारत की लागत संरचना और महंगाई को प्रभावित कर सकते हैं।

विश्लेषकों की राय है कि जब तक ब्रेंट क्रूड की औसत कीमत USD 80 प्रति बैरल से नीचे बनी रहती है, तब तक भारत पर कोई गंभीर असर नहीं पड़ेगा। FY25 में यह औसत USD 79 रहा, जिससे भारत को थोड़ी राहत मिली है। लेकिन यदि यह स्तर पार हो गया, तो सरकार और RBI को तुरंत नीतिगत हस्तक्षेप करने की आवश्यकता होगी।

फिलहाल भारत को यह अवसर मिला है कि वह आर्थिक स्थिरता को मजबूत करे, जैसे कि विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाना, वित्तीय अनुशासन बनाए रखना और मुद्रास्फीति लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध रहना। लेकिन दुनिया भर में उठते संकट और बाज़ारों में बढ़ती अनिश्चितता इस “शांत” दौर को किसी भी समय तूफान में बदल सकते हैं।


भारत में मुद्रास्फीति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन वैश्विक परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं। ईरान-इज़राइल संघर्ष और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल भारत की आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है। सीधे व्यापारिक संपर्क सीमित होने के बावजूद, वैश्विक बाजार की हरकतें भारत जैसे आयात-आधारित देश को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं।

इसलिए जरूरी है कि नीति निर्माता सतर्क, सक्रिय और लचीले रहें ताकि वे समय रहते इन बाहरी झटकों से निपट सकें और भारत की आर्थिक विकास यात्रा को पटरी पर बनाए रख सकें।

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